सफर-ए-ज़िंदगी! ये कश्मकश-ए-ज़िंदगी, ये दुख, परेशानी हसीन ज़िंदगी हमारी बस तसव्वुर में रहीं फ़िज़ा-ए-मोहब्बत की हमने बस राह देखी ख़िज़ाँ-ए-नफ़रत, मायूसी मगर हमेशा रही दौलत, शोहरत के पीछे भागदौड़ हमने देखी इसमें बदलते लोग ही नहीं, दोस्ती भी देखी सत्ता के खेल में बदलती राजनीति हमने देखी समाज को बाँटते हुक्मरान की असलीयत जानी ना सुकून-ए-ज़िंदगी; तग़ाफ़ुल, बेचैनी हमने पायी हसीन इश्क़ की चाहत में सच्ची हमनफ़स गवाई जहान-ए-प्यार की हमें उम्र भर तलाश रही दश्त-ए-तन्हाई में मगर हमारी ज़िंदगी रही आरजू किसे हैं अब जन्नत-उल-फ़िरदौस की हमें तो 'मानस' अपना गुलशन चाहिए यहीं! - मनोज 'मानस रूमानी'