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Showing posts from March, 2021
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हिंदुस्तानी औरत की आवाज़-ए-दर्द थी आप हिंदुस्तानी सिनेमा की महज़बीन ही थी आप - मनोज 'मानस रूमानी' भारतीय सिनेमा की ट्रैजडी क्वीन मीना कुमारी जी को स्मृतिदिन पर सुमनांजली!
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सब रंग ये होली के हैं फ़िके इश्क़ के अपने रंग के आगे निकल जाएंगे सब आसानी से इश्क़ का अपना रहेगा जम के - मनोज 'मानस रूमानी'
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होली मुबारक़! कुदरत ने भर दिए हैं हसीन रंग हम पर हैं ज़िन्दगी कैसे दे रंग! - मनोज 'मानस रूमानी'
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"यह है पूरब और जूलिएट है सूरज" शेक्सपियर का रोमियो हैं कहता! चाँदनी रात में "आप हो महज़बीन" हमारा प्रेमी महबूबा को हैं कहता! - मनोज 'मानस रूमानी' (आज के 'विश्व रंगमंच दिन' पर!)
'रंगमंच दिन' तो रोज होता है यहाँ झूठ-जुमलेबाजी के हुक्मरान जहाँ - मनोज 'मानस रूमानी'
अब भी शादाब है ज़ीनत-ए-दिल 🥬 खिल सकतें उसमें प्यार के गुल 🥀 - मनोज 'मानस रूमानी'
दिलों के दरवाजें शायद हैं खुलें 💗 तो प्यार से उसमें ही सफर करें 💞 - मनोज 'मानस रूमानी'
बादलों ने आज दिखाई समझदारी 🙏 इस 'जल दिन' पर बरसाया पानी 🌧 - मनोज 'मानस रूमानी'
फ़िज़ा रूमानी और तसव्वुर में माशूक़ा 💗 शायर के लफ़्ज़ तब होतें है आशिक़ाना 🖊 - मनोज 'मानस रूमानी'
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'विश्व कविता दिवस' की शुभकामनाएं! - मनोज 'मानस रूमानी'
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सभी के पाक़ दिन, महफ़िल में गूँजतें मज़हब से परे हैं सुर उनके शहनाई के - मनोज 'मानस रूमानी' (शहनाई नवाज़ 'भारतरत्न' बिस्मिल्लाह ख़ान जी को १०५ वे जनमदिन पर सलाम!)
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इश्क़ में ऐसे गुम रहतें.. ख़याबाँ में दिखतें है कोई दिन में भी आँखें मूँद के.. ख्वाँब देखा करतें हैं कोई - मनोज 'मानस रूमानी' (आज के 'वर्ल्ड स्लीप डे' पर!)
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जज़्बातों को परदेपर बयां करनेवाली हुस्न-इश्क़ की मौसीक़ी सुनानेवाली अपने सिनेमा को जिससे ज़ुबान मिली वह अर्देशिरजी की 'आलम आरा' ही थी - मनोज 'मानस रूमानी' [अपने भारतीय सिनेमा की पहली टॉकी अर्देशिर ईरानी की 'आलम आरा' (१९३१) के ९० साल पुरे होने पर!]
चाँद के बाद..मंगल पर उतरेगा इंसान 🌖 पर किसी के दिल में उतरना है मुश्किल 💗 - मनोज 'मानस रूमानी'
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IXORA! Collectively they flourish.. in the same one colour, close to each other. Beautifully with messages.. belongingness and love in the shape of a heart! - Manoj 'manas roomani' (Wrote on bunch of Ixora flower flourished at our place!)
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अबोली आता बोलू लागली.. फुलून सुगंध दरवळू लागली! - मनोज 'मानस रुमानी' (When Aboli speaks at our place!)
आसमाँ के चाँद से खिलती है आशिक़ी कहीं रोटी में चाँद देखती हैं मुफ़लिसी! - मनोज 'मानस रूमानी'
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रातराणी चा सुगंध जेंव्हा घरावर दरवळतो रूम फ्रेशनर चा कृत्रिम सुगंध फिका पडतो - मनोज 'मानस रुमानी' (Fragrance of Ratrani tree on our bungalow at koregaon park!)
बेवफ़ाई, ज़ुल्म-ओ-सितम से परेशां कैसे करतें कोई जहाँ को अलविदा? 😢 - मनोज 'मानस रूमानी'