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Showing posts from February, 2020
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कुसुमाग्रजांच्या कवितांचा तर्जुमा गुलज़ार करतात.. तेंव्हा मराठी आणि हिंदी ह्या भगिनी एकरूप होतांत! - मनोज 'मानस रुमानी'
कहतें थे तुझको दिलवालों की दिल्ली क्या हालत कर दी सरफिरों ने तेरी! - मनोज 'मानस रूमानी'
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दुनियाँ में मोहब्बत की अनोखी मिसाल हैं यह.. दिल-ओ-जान से प्यारा हमारा ताज़महल हैं यह! - मनोज 'मानस रूमानी' (तीस साल पुरानी मैंने वहां ली हुई तस्वीर!)
मोहब्बत का हमारा असली ताज़ देखकर कैसीनोवालें आएं हुएं शायद हैं शर्मसार! - मनोज 'मानस रूमानी'
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हुस्न-ए-जन्नत ऐसा होता है मेहरबाँ कभी.. जमीं पर उतरती हैं तब हुस्नपरी ऐसी कभी! - मनोज 'मानस रूमानी' {'मलिका-ए-हुस्न' मुमताज़ जहाँ 'मधुबाला' के जनमदिन पर!}