Posts

Showing posts from August, 2020
Image
You feel the world is beautiful when you have love with you! - Manoj 'manas roomani' [I wrote these lines, when saw this image of Gregory Peck with Ingrid Bergman from Hitchcock's film 'Spellbound' (1945). It's tribute to her on 105th birth anniversary!]
Image
दो जुगों के चहेते नायकों का ये जश्न.. छलकते जाम, बदले बदले से हमसफ़र चंदेरी दुनियाँ ने फिर यूँ बदली करवट.. रात में ही उसका ताज आया इसके सर - मनोज 'मानस रूमानी'  
कैसे हो सकता हैं इश्क़-ए-पाक़ वो जिसकी बुनियाद ग़र तिज़ारत हो - मनोज 'मानस रूमानी'
वीरान ज़िंदगी तब शादाब होती हैं इश्क़ की इबादत जब रंग लाती हैं - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
मोहब्बत के नाम पर सरल ग़ज़ल लिख़ने की मेरी यह क़ोशिश हैं.. इंतज़ार-ए-इश्क़! ऐ मोहब्बत तू मिलेंगी फिर ये हमें हैं यक़ीन ज़िंदगी हमारी होंगी हसीन ये हमें हैं यक़ीन यूँ तो दीदार-ए-हुस्न हर मोड़ पर हुआ हमें अब एहसास-ए-इश्क़ होगा ये हमें हैं यक़ीन छूट गया था हमसे हसीन लम्हा ज़िंदगी में इज़हार-ए-इश्क़ का पा लेंगे ये हमें हैं यक़ीन वाक़िफ़ हैं हुस्न-ओ-इश्क़ से ख़ूब हम 'मानस' जीत ही लेंगे प्यार की मंज़िल ये हमें हैं यक़ीन - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
मेरे सबसे अज़ीज़ गायक मोहम्मद रफ़ी जी से सपने में हुई मुलाक़ात पर मैंने यह लिखा.. हसरत हुई पूरी! एक ख़लिश मन में थी.. काश मिलते अज़ीज रफ़ी जल्द रुख़सत हुए थे वे हम मिलने से पहले ही हसरत उन्होंने पूरी की हमारी उनसे मिलने की कल सपने में आए घर.. बैठाया उन्हें जगह ऊँची बातें कर ली खूब सारी उनकी आवाज़-गाने की निकल चुके थे वे तब.. जब मेरी आँखें खुली.. कानों में आवाज़ गूँजी.. "तेरी दुनिया से दूर s चले हो के मजबूर.." मेरी आँखें नम हुई! - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
गणेशोत्सव आणि प्राजक्ताची फुले यांचे सुगंधी नाते माझ्या बालपणाशी जोडले होते! ते मी या कवितेत उतरवले आहे.. तो प्राजक्त सुगंधी! आठवणींच्या हिंदोळ्यावर आज प्राजक्त फुलला गेणेशोत्सवातले रम्य बाल्य पुन्हा घेऊन आला श्रावण सर येऊन जाता दरवळे गंध मातीचा.. भाद्रपदाची चाहुल मग देई सुगंध प्राजक्ताचा हळुवार भावनांना फुलवणारा साथी तो होता टप टप टप पडणारा सडा असा प्राजक्ताचा ऋतु असेच फुलत होते काळ पुढे जाता... ऋणानुबंध ही होत होता वृद्धिंगत आमचा फुल त्याचे ऐटीत कळीवर होते एकदा.. बहुदा सुचवत होते क्षण आला प्रीतीचा मीही मग पाहिली जुई फुललेली बाजुला.. घेतली फुले तिची देण्या पहिल्या प्रेमाला! - मनोज 'मानस रुमानी'
रिकॉर्ड कब तक यूँ ही घूमेगी दिल में.. वक़्त पे दिमाखी सुई लगे की वो सुने! - मनोज 'मानस रूमानी'
सदाएँ हमें कोई दे या न दे प्यार बयां करके चलना हैं - मनोज 'मानस रूमानी'
रुकी, रूखी हो गई हैं ज़िंदगी बहार बनके आए कोई हसीं! - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
अतीत के हसीन झरोखे में जाने का जज़्बा मैंने इस नज़्म में बयां किया हैं.. जज़्बाती लिफाफा! एक दिन यादों की अलमारी खोली.. लिफाफा मिला लगाया दिल गुलाबी तबका, ख़त आतें थे पूछने खुशहाली अब खुलने जा रहें थे लम्हें वे हसीं.. हाथ में आया ख़त उसका नाजुक हाथों से लिखा, बेझिझक डिअर लिखा.. एक ग्रीटिंग भी मिला खुशबूं लगाए भेजे ख़त का जवाब आया था प्यार भरा चूमने से धुंदलासा गया था जो अहम ख़ास लिखा था एक पल बैठा सीने से लगाये फिर धीरे धीरे लगा पढ़ने.. आसुँओं को रोका ऐनक ने एक टपकाही नामपर उसके कोसता रहां बाद में खुद को.. क्यूँ न समझा उसके जज़्बे को क्यूँ न बना सका हमदम उसको क्यूँ बेसहारा रखा ज़िंदगी को! - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
विज्ञान की रौशनी लाए आफ़ताब थे आप सौहार्द और प्यार के शीतल चाँद थे आप! - मनोज 'मानस रूमानी' (हमारे धर्मनिरपेक्ष और आधुनिक भारत के गुजरे प्रधानमंत्री श्री. राजीव जी गांधी को ७६ वे जनमदिन पर सलाम करते लिखा!)  
Image
अब सरफ़रोशी लिए हैं सब क्रांति के मतवाले नोच डालेंगे नक़ाब आपके सब दकियानूसी पाखंड के - मनोज 'मानस रूमानी' ('अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति' के, तर्कवादी लेखक और समाज प्रबोधक डॉ. नरेंद्र दाभोलकर जी को उनके ७ वे स्मृतिदिन पर सलाम करते लिखा!)
Image
On today's 'World Humanitarian Day' I wrote this.. BE HUMAN..AND LOVE! Let us first become human we all are same on earth only geographically divided our emotions are universal Let us forget all divisions region, religion and colour let Humanity be our religion and bathe in colour of Love Let us help people in needs share sorrows of each other let us spread the happiness and create a world of love! - Manoj 'manas roomani'
न फ़स्ल-ए-ग़ुल हैं न ही जुंबिश कोई खिज़ा में अटके हैं 'मानस' क्या करे! - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
आदाब अर्ज़ हैं! नज़ाकत और नफ़ासत का लाजवाब मंजर हैं ये हसीन रुख़-ए-महताब के नूऱ की इस चमक में फ़ुरक़त का दर्द बयां करतीं हैं ख़ूबसूरत आँखें गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठ हैं प्यार समेटें! - मनोज 'मानस रूमानी' (फ़ेवरेट ख़ूबसूरत सोनम कपूर की इस क्लासिक फ़्रेम पर मैंने यह लिखा हैं!)
Image
अपने वतन को आज़ादी मिलकर तो लंबा अरसा बिता। लेकिन क्या व्यक्तिगत स्तर पर आज़ाद हैं हम? इसपर मैंने यह नज़्म लिखी हैं। क्या हैं आज़ाद हम? आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम.. अपनों से क्या आज़ाद हैं हम? बलवानों की हैं हुकूमत समाज में हो या घर कितने पाते हैं बोल कितने ले सकते हक़ आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम.. जात-धर्म से हैं पहचान कोई न समझते इंसान हैं बटें हुए यहाँ सब जी चाहे रंग के साथ आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम.. चुनाव में आपका मत फिर कौन पूछता मत पाने को अपना वजूद कर रहें यहाँ संघर्ष.. आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम.. गरीब अभी भी हैं गरीब धन से बढ़ता है अमीर मुश्किल से लेते है पढ़ फिर जारी काम तलाश आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम.. अभी भी जाते हैं कुचल निर्धन, अबला, असहाय कौन सुने इनकी आवाज़ सबको बस अपनी सोच आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम.. क्या वो दिन आएगा 'मानस' सबकी सुनी जाएगी आवाज़ सब को मिलेगा अपना हक़ मानेंगे सब तिरंगा ही ध्वज आज़ाद मुल्क के बाशिंदे हम.. - मनोज 'मानस रूमानी'
हाँ, अपने आज़ाद मुल्क़ में हैं हम बस एहसास होना बाक़ी हैं 'मानस' - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
आदाब अर्ज़ हैं! अपने वतन को आज़ादी मिलने पर भी, बटवारे से जुदा होने का दुख और फिर एक होने की आशा इस पर मैंने यह तरक़्क़ीपसंद नज़्म लिखी हैं.. एक थे..फिर होंगे?! जाते जाते टुकड़े कर गए अंग्रेज़ वतन पर अपने खींचकर लकीर बटवारे की याद दिलाए यह दिन! कर गयी लकीर बड़ा ज़ख्म इस धरती माँ के सीने पर.. करके जुदा उसके दो लाल! अपनों में झगड़ा लगाई लकीर बुनियादी समस्या की हुई जड़ फिरंगी चाल यूँ हो गई सफल! शक्ल-सूरत से जो हैं एक रहन-सहन, संस्कृति एक तो फिर रहें क्यूँ ये अलग? यूरोप जहाँ अब हुआ एक और भी कर रहें हैं पहल.. हम फिर क्यूँ न होंगे एक? - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
हमारे भारतीय सिनेमा के सुनहरे काल की ख़ूबसूरत अदाकारा वैजयंतीमाला के जनमदिन पर उनकी ख़ासियत से लेकर लिखा.. चंद्रमुखी सम सबको भा गयी आप मधुमती सम मीठी महसूस हुई आप अप्सरा सम आम्रपाली दिख गई आप फूल बरसे वो सूरज की मेहबूब भी आप - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
चाँदनी थी आप आस्माँ से उतरी बेनज़ीर थी आप जहाँ-ए-फ़न की - मनोज 'मानस रूमानी' (अपने लोकप्रिय सिनेमा की ख़ूबसूरत अभिनेत्री श्रीदेवी को जनमदिन पर याद करते हुए!)
Image
कभी आँधियों में फस कर, कभी उलझे यूँ परेशां, झुंजते रहते हैं कोई ज़िंदगी में - मनोज 'मानस रूमानी' (गर्दिश में रहे बॉलीवुड स्टार संजय दत्त ठीक हो जाए!)
Image
आदाब अर्ज़ हैं! हाल ही में मैंने यह रूमानी नज़्म लिखी हैं.. ऐ हबीबी..! तुम ही हो जहाँ-ए-हुस्न.. मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम चमन में जिस पर ठहरे नज़र वो लाजवाब नर्गिस हो तुम मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम.. निखर जाए दिल-ए-आशिक़ बस वो नूऱ-ए-शबाब हो तुम मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम.. तुम्हे कौनसा नज़र करे ग़ुलाब इस गुलशन की ज़ीनत हो तुम मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम.. अब प्यार को मेरे करलो क़ुबूल ये तस्कीन-ए-दिल करो तुम मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम.. - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
कन्हैया छेड़ते प्रीत की धून राधा उसपर नाचती भी ख़ूब दोनों होतें प्यार में मगन.. रासलीला यूँ रंग लाती तब बाँसुरी बजातें प्रिया के होठ वो कमलमुख प्रेमी के हाथ - मनोज 'मानस रूमानी'  
जल्द रुख़सत हुए आप राहत देखकर ही जाते तख़्ता पलट!  - मनोज 'मानस रूमानी
Image
आज के श्रीकृष्ण जयंती पर मैंने यह गीत लि खा हैं! (धार्मिक न होते हुए भी उनकी लुभावनेवाली ख़ासियत से प्रेरित!) सब के मनभाये ओ बाँसुरीवाले श्याम.. भगवान से ऐसे हुए स्नेह-प्रीत के आप! वसुदेव-देवकी के नन्हे आप नन्द-यशोदा के हुए लाल आम में बसना चाहे आप गोकुल में ऐसे खिले आप सब के मनभाये ओ बाँसुरीवाले श्याम.. श्वेत को न अपनाये आप श्याम रंग में खिले आप भेद न किया राजा-रंक जात-पात न माने आप सब के मनभाये ओ बाँसुरीवाले श्याम.. मित्रता की दे दी मिसाल सुदामा बने आप के खास रिश्तों के परे गए आप राधा के जब हुए आप सब के मनभाये ओ बाँसुरीवाले श्याम.. संगीत से ऐसे जुड़े आप बांसुरी के जैसे हुए आप छेड़ गए यूँ मनोरम धुन प्रीत उस पर खिली ख़ूब सब के मनभाये ओ बाँसुरीवाले श्याम.. - मनोज 'मानस रूमानी'
हिलाते थे साहिब-ए-मसनद का तख़्त बुलंद शायर राहत कैसे हुए रुख़सत! - मनोज 'मानस रूमानी'  
Image
आज के 'अगस्त क्रांति दिन' के अवसर पर मैंने इन पंक्तियों को लिखा.. क्रांति..हरदम जरुरी! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. मजहब परे देखने के लिए इंसानियत धर्म के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. दबी आवाज़ के लिए दबे जीवन के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. अपने वजूद के लिए हक़ पाने के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. समान हक़ पाने के लिए सबके सम्मान के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. खुली साँस लेने के लिए पसंदीदा जीने के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. ज़िंदगी सुधारने के लिए उसमे अर्थ लाने के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. अभिव्यक्त होने के लिए कला की सृजन के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. प्रेम से जीने के लिए गले मिलने के लिए! - मनोज 'मानस रूमानी'
हुस्न और दिल खिलेंगे बस जाये ख़िज़ाँ 'मानस' इश्क़ से फ़िर रोशन होंगी फ़िज़ा - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
 आदाब अर्ज़ हैं! हवा के हलके झोंके से जो बाल सरकेँ हसीन रुख़ से देखकर हमें तो ऐसा लगा बादल हट रहें महताब से! - मनोज 'मानस रूमानी'
राजत्याग करके जो बनवास गए थे.. उनका नाम लेकर राजछीनी हो रही हैं! - मनोज 'मानस रूमानी'
दिल में हैं राम और रहमान हमारें! मुँह में और बगल में क्या हैं आपके? - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
Very rarely we experience joyous moments in life! Remembering them feels soothing to wet eyes! - Manoj 'manas roomani'
शगुफ़्ता हुस्न आपका यूँ रिझाता रहें रूमानी अल्फ़ाज़ भी हमारे शादाब रहें - मनोज 'मानस रूमानी'
जमाल-ए-हुस्न किसीका न बैठे समझ आफ़ताब भी हम और महताब भी हम - मनोज 'मानस रूमानी'
दोस्त ने गाया दोस्त का नग़्मा! पिछले कुछ साल मैं 'मनोज 'मानस रूमानी' इस नाम से शेर-ओ-शायरी लिख रहा हूँ यह आप जानते हैं। हाल ही में मैंने ग़ज़ल, नज़्म लिखना भी शुरू किया। अब मुझे यह नमूद करते हुए ख़ुशी होती हैं की, 'मित्रता दिन' पर मेरा इसी विषय पर 'रिश्ता अनमोल दोस्ती का' यह नग़्मा मेरे पुराने स्नेही और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कार्यरत पुष्कर सिन्हा जी ने खुद संगीतबद्ध करके गाया है।  इस एवी क्लिप में आप यह देखे-सुने: https://facebook.com/100000493794933/videos/3776735495686206/ धन्यवाद् प्रिय दोस्त पुष्कर!! - मनोज कुलकर्णी
Image
राखी ऐसी अनमोल होती हैं हमारे हिन्दोस्ताँ में अंदाज़-ए-यूसुफ़ बंधे होते हैं इसमें स्वरलता से! - मनोज 'मानस रूमानी'
Image
FRIENDSHIP! We have to preserve the precious Friendship Happen in equal individuals it's beyond all relationships We need true friend to share each emotion Only friend help us in our difficult times Unfortunately it is rare getting true friend in life! - Manoj 'manas roomani' (I just wrote this on the occasion of 'Friendship Day'!)
Image
रिश्ता अनमोल दोस्ती का! मिलता हैं ज़माने में दोस्त मुश्क़िल से.. संभालना होता है उसे दिल-ओ-जान से! ख़ुशियों में होते हैं जो साथ दुख में लेते हैं मुँह फेर आता हैं ऐसा वक़्त जब साथ होता हैं सिर्फ़ दोस्त होता है ज़माने में रिश्ता ऐसा अनमोल। ना ये देखे जात-धर्म ना इसमें कोई राजा-रंक हैं इसमें सिर्फ़ दोनों इंसान होतें हैं जिनके एक जज़्बात होता है ज़माने में रिश्ता ऐसा अनमोल। होता हैं कभी बेवफ़ा प्यार चल देता हैं छोड़कर साथ संभालता हैं तब अपना दिल दोस्त जो निभाता हैं साथ होता है ज़माने में रिश्ता ऐसा अनमोल । है जरुरी ज़िंदगी में हमसफ़र मुश्क़िल हैं बिना उसके सफ़र दोस्त बनता हैं ऐसा हमराह साथ ना छूटे उसका उम्रभर होता है ज़माने में रिश्ता ऐसा अनमोल । - मनोज 'मानस रूमानी' (आज के 'फ़्रेंडशिप डे' पर मैंने लिखा यह दोस्ती का नग़्मा आशा हैं आपको पसंद आएं!)
मिले हुए रूमानी होतें हैं दिल प्यार के ना अलग ना छोटे-बड़े न किसी रंग के - मनोज 'मानस रूमानी'
हिना यूँ ही खिलती रहें पत्तों में.. हाथों पर कि कोई दिल महक उठें - मनोज 'मानस रूमानी'
ख़्वाहिश तो हमारी यही हैं ईद पर.. जहाँ में सबको जीने का मिले हक़! - मनोज 'मानस रूमानी'
सिर्फ़ इंसानों की नहीं हैं यह दुनिया बाक़ी भी हक़दार चाहतें यहाँ जीना! - मनोज 'मानस रूमानी'