आदाब अर्ज़ हैं!
हाल ही में मैंने यह रूमानी नज़्म लिखी हैं..

ऐ हबीबी..!

तुम ही हो जहाँ-ए-हुस्न..
मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम

चमन में जिस पर ठहरे नज़र
वो लाजवाब नर्गिस हो तुम
मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम..

निखर जाए दिल-ए-आशिक़
बस वो नूऱ-ए-शबाब हो तुम
मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम..

तुम्हे कौनसा नज़र करे ग़ुलाब
इस गुलशन की ज़ीनत हो तुम
मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम..

अब प्यार को मेरे करलो क़ुबूल
ये तस्कीन-ए-दिल करो तुम
मेरा जहाँ-ए-इश्क़ हो तुम..

- मनोज 'मानस रूमानी'

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