अतीत के हसीन झरोखे में जाने का जज़्बा मैंने इस नज़्म में बयां किया हैं..

जज़्बाती लिफाफा!

एक दिन यादों की अलमारी खोली..
लिफाफा मिला लगाया दिल गुलाबी
तबका, ख़त आतें थे पूछने खुशहाली
अब खुलने जा रहें थे लम्हें वे हसीं..

हाथ में आया ख़त उसका
नाजुक हाथों से लिखा,
बेझिझक डिअर लिखा..
एक ग्रीटिंग भी मिला

खुशबूं लगाए भेजे ख़त का
जवाब आया था प्यार भरा
चूमने से धुंदलासा गया था
जो अहम ख़ास लिखा था

एक पल बैठा सीने से लगाये
फिर धीरे धीरे लगा पढ़ने..
आसुँओं को रोका ऐनक ने
एक टपकाही नामपर उसके

कोसता रहां बाद में खुद को..
क्यूँ न समझा उसके जज़्बे को
क्यूँ न बना सका हमदम उसको
क्यूँ बेसहारा रखा ज़िंदगी को!

- मनोज 'मानस रूमानी'

Comments

Popular posts from this blog