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Showing posts from March, 2023
भ्रष्ट तानाशाही की अब तो हद हो गई.. जम्हूरियत, अभिव्यक्ति पर आँच आ गई - मनोज 'मानस रूमानी'
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नव वर्ष..विचार!! चैत्रातील हा नव वर्षारंभ घेऊन येवो नव चैतन्य..! 'वसुधैव कुटुंबकम्' विचारानं सर्व मानवजातीच्या प्रगतीचं! धर्म-जात सर्व भेद विसरून.. प्रेम, स्नेह भाव रुजवण्याचं! - मनोज 'मानस रूमानी'
रोमियो, मजनु थे सच्चे आशिक़ ही.. उनकी माशूकाए भी थी उन्हें चाहती! - मनोज 'मानस रूमानी'
पुन्हा धुळवड दोन रंगांची.. अस्तित्वाची नि हुकुमतीची! मिसळावी यात बंधुभावाची माणूसकीची आणि प्रेमाची.! - मनोज 'मानस रुमानी'
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कहीं दीवारे..कहीं सरहदें.. सीमाओं में बंद मोहोब्बतें! फिर भी ज़ोर-ए-जज़्बात.. रहें पैग़ाम-ए-प्यार फैलाए! - मनोज 'मानस रूमानी'
काफ़ी हैं हमें हमदम, हमनफ़स की तवज्जोह नहीं दिलचस्पी, न चाहते हुजूम की तवज्जोह - मनोज 'मानस रूमानी'
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होते कुछ अपने जज़्बात, फ़साने, कुछ फ़लसफ़ा.. ऐसी शायरी हमारी ज़माने से भी होती हैं वाबस्ता! - मनोज 'मानस रूमानी' ('वर्ल्ड पोएट्री डे' मुबारक़!)
मुख़्तसर हैं ज़िंदगी और अधूरा है काफ़ी कुछ पसंदीदा काम, ज़िम्मेदारी, ख्वाहिशें, ख़्वाब! - मनोज 'मानस रूमानी'
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इब्तिदा-ए-इश्क़ हमेशा ही हुआ; इज़हार-ए-'इश्क़ सिर्फ़ नहीं हुआ जज़्बा-ए-मोहब्बत भी नहीं थमा; क्योंकी दीदार-ए-हुस्न होता रहा! - मनोज 'मानस रूमानी'
वो राह-ए-मंज़िल, हमनफ़स नज़रअंदाज़ न होतें गुज़री है ज़िंदगी ये अहम गँवाने की नदामत में! - मनोज 'मानस रूमानी'
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शबाब.! नज़ाकत से भरी यह चाल, अदाएं.. हवा का रुख़ बदलती रेशमी जुल्फ़े.. बेशुमार प्यार भरी पंखुड़ियों सी आँखे दिल-ए-आशिक़ संभल जाए भी कैसे! गुलाबों रंगत लिए लबोँ की बहारें.. गाल पर तिल..की बचे नज़रों से.. ज़ीनत तुम गुलशन-ए-हुस्न से... दिल-ए-आशिक़ संभल जाए भी कैसे! - मनोज 'मानस रूमानी'
रस्म-ओ-रिवाज के बस में जहाँ ज़िंदगियाँ.. कोई कैसे चाहे वहाँ खोये प्यार का आसरा! - मनोज 'मानस रूमानी'
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अपना ग़म छुपाके ख़ुशियाँ बाँटतें चले गए बड़े दिल के इंसान की मिसाल देते चले गए - मनोज 'मानस रूमानी' (लगभग चार दशक बतौर लेखक, निर्देशक और अभिनेता के रूप में अपने फ़िल्म जगत में ज़िंदादिल शख़्सियत रहें सतीश कौशिक जी का अचानक इस जहाँ को छोड़ जाना दुखद हैं। उन्हें यह सुमनांजलि!)
अभी तक आप के इख़्तियार में रहे ऐ ज़िंदगी अब तो हमारे इख़्तियार में आओ ऐ ज़िंदगी! - मनोज 'मानस रूमानी'