शबाब.!
नज़ाकत से भरी यह चाल, अदाएं..
हवा का रुख़ बदलती रेशमी जुल्फ़े..
बेशुमार प्यार भरी पंखुड़ियों सी आँखे
दिल-ए-आशिक़ संभल जाए भी कैसे!
गुलाबों रंगत लिए लबोँ की बहारें..
गाल पर तिल..की बचे नज़रों से..
ज़ीनत तुम गुलशन-ए-हुस्न से...
दिल-ए-आशिक़ संभल जाए भी कैसे!
- मनोज 'मानस रूमानी'
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