जज़्बातों को परदेपर बयां करनेवाली
हुस्न-इश्क़ की मौसीक़ी सुनानेवाली
अपने सिनेमा को जिससे ज़ुबान मिली
वह अर्देशिरजी की 'आलम आरा' ही थी


- मनोज 'मानस रूमानी'

[अपने भारतीय सिनेमा की पहली टॉकी अर्देशिर ईरानी की 'आलम आरा' (१९३१) के ९० साल पुरे होने पर!]

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