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कभी मिलकर ख़ूबसूरत पल गुजारें थे अब नहीं यहाँ वे साथी, वो हमनफ़स! अतीत के झरोखे में ही पल वह देखते यादों के सहारे अकेले बैठे हैं 'मानस'! - मनोज 'मानस रूमानी' पिछले रविवार को हमारे 'संज्ञापन और पत्रकारिता विभाग' (पुणे विद्यापीठ), रानडे इंस्टिट्यूट के 'एल्युमिनी मीट - २०२५' में बैठे हम! - मनोज कुलकर्णी
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उसे कौनसा नज़र करे ग़ुलाब...? गुलशन-ए-हुस्न की ज़ीनत है वह! - मनोज 'मानस रूमानी'   (वैलेंटाइन वीक!)
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खिलतें रहें यूँ ही गुलाब हुस्न के.. रंगे फ़िज़ा इश्क़ की रूमानियत में - मनोज 'मानस रूमानी' (वैलेंटाइन वीक!)
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आसान नहीं रही ज़िंदगी और ना ही रहे हम भी! अपने जहाँ के लिए.. जारी है जंग अब भी! - मनोज 'मानस रूमानी' (मनोज कुलकर्णी)
समता, बंधुता, मानवता प्रिय.. एक आहोत आपण सर्व भारतीय! - मनोज 'मानस रुमानी '
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  हो..तमन्ना पूर्ति का उम्मीद, उमंग से भरा प्यार-भाईचारे से खिला मुबारक यह साल नया! - मनोज 'मानस रूमानी'
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जा रहा हैं पुराना होकर अब ये साल भी.. था नया लेकर आया उम्मीदों भरा ये भी! ज़िंदगी का सफर चल तो रहा हैं वैसे भी.. मंज़िल की तलाश में हैं मुसाफ़िर अब भी! - मनोज 'मानस रूमानी'