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मौसम-ए-बहार में नफ़रत की ख़िज़ाँ अब प्यार के गुल ही खिला दे फ़िज़ां - मनोज 'मानस रूमानी'
कब तक करोंगे बहस धर्म-मज़हब पर 🤔 गुज़र जाएगी ज़िंदगी बग़ैर किए प्यार! 💔 - मनोज 'मानस रूमानी'
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पहला हसीन प्यार! जब भी रु-बरु हुएं..बात तो हो न सकी कुछ हमारे उसूल..कुछ उनकी जल्दी! जुस्तुजू थी यहाँ..और इक़रार वहां भी रिवाज़ों पर चलती..वह बिदा हो गयी! उम्र गुज़री लेकिन..दिलो दिमाग वहीँ प्यार से संभाले..हसींन यादें ही सहीं.! - मनोज 'मानस रूमानी'   (On teenage first love!)
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आसमाँ का चाँद तो ख़ैर नज़र आएगा मुश्ताक़ है कोई अपने चाँद के लिए! - मनोज 'मानस रूमानी'
कैसी बेरुख़ी ये..कोई हमदम न मिले रुख़-ए-महताब ही दिल शगुफ़्ता करे! - मनोज 'मानस रूमानी
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अब भी शादाब है यह ज़ीनत-ए-दिल खिल सकतें उसमें मोहब्बत के गुल! - मनोज 'मानस रूमानी'
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ईद की दिली मुबारक़बाद! अमन, भाईचारे का समाँ हर तरफ़ हो प्यार की शमा रोशन हर दिल में हो! - मनोज 'मानस रूमानी'