क्या सच होगा यह ख़्वाब कभी..
ख़त्म हो जुदाई, हटे सरहद भी!

एक जड़ के रहतें इस-उस तरफ
मिटाएं झगड़े और होंगे एक ही!


- मनोज 'मानस रूमानी'

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