हसीन लम्हें जहाँ छोड़ गएँ-आएँ
बटवारे से पहले लोग दोनों तरफ़
ढूंडतें जब अपने वजूद के निशाँ
बस वीराना पातें हैं दोनों तरफ़!
बटवारे से पहले लोग दोनों तरफ़
ढूंडतें जब अपने वजूद के निशाँ
बस वीराना पातें हैं दोनों तरफ़!
- मनोज 'मानस रूमानी'
[बटवारे के बाद यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ तबदील हुएँ लोग जब अपनें जन्मस्थान देखनें पहुंचतें तो उनको यह अहसास होता हैं!
इसपर मैंने उपर की चार पंक्तियाँ लिखीं!]
[बटवारे के बाद यहाँ से वहाँ और वहाँ से यहाँ तबदील हुएँ लोग जब अपनें जन्मस्थान देखनें पहुंचतें तो उनको यह अहसास होता हैं!
इसपर मैंने उपर की चार पंक्तियाँ लिखीं!]
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