ख्वाबों के आसमाँ में उड़ती रहती
हर किसी की ज़िन्दगी की पतंग..
ख़्वाहिश-ए-मंज़िल कोई पा लेती
कट जाती किसीसे कोई बीच डगर!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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