आदाब अर्ज़ हैं!

दिल में अब भी है शमा आप के लिए
फिर आके इसे रोशन आप कीजिए

दिल-नशीं हो इस अंजुमन की आप
नूर-ए-हुस्न से अब रौनक बढ़ाइये


दिलबर रही हो इस जान की आप
समा के तस्कीन-ए-दिल कीजिए


कबसे मायूस हैं यह दिल बिन आपके
इसे फिर शादाब-ओ-शगुफ़्ता होने दे!


- मनोज 'मानस रूमानी'

Comments

Popular posts from this blog