हमसफ़र!
हमको वो कहते थे 'अब हमसफ़र बनाओ किसी को'..
अब उनको यह कैसे कहते 'बनाना तो था आप ही को!'
दिमाग़ कोशिश करता है काबू रखने उन जज़्बातों को;
लेकिन दिल है कि ज़ेवर की तरह संभाल रखा है उनको!
- मनोज 'मानस रूमानी'
'शायर-ए- महफ़िल' से सम्मानित! आदाब/नमस्कार! आपको यह जानकारी देते हुए ख़ुशी होती है कि, हाल ही में मुझे 'अंजुमन' की जानिब से (हिंदी-उर्दू काव्य में उत्कृष्टता के लिए) 'शायर-ए-महफ़िल' ख़िताब से नवाज़ा गया! 'अंजुमन' की चौथी वर्षगांठ पर पुणे में आयोजित समारोह में मान्यवर शायर श्री. असलम हसन जी के हाथों से यह पुरस्कार मुझे दिया गया! इस लिए 'अंजुमन' के अध्यक्ष श्री. महेश बजाज (शायर अंजुम लखनवी) जी का मै शुक्रगुज़ार हूँ! - मनोज कुलकर्णी (मानस रूमानी)
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