रूपहले पर्दे की कभी ज़ीनत थी..
मुमताज़ जहाँ, नर्गिस, महजबीं!

तो फिर आज क्यों मुरझा गई..
अदाकारी की कश्मीर की कली?


- मनोज 'मानस रूमानी'

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