चिठ्ठियों की भीड़ में...
कुछ संवेदनशील, कुछ अवसरवादी
पीड़ा सहतें बेकसूर इंसान और
बेअसर सियासतदार, मूलतत्ववादी


- मनोज 'मानस रूमानी'

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