सुब्ह-ए-नौ की आरज़ू में
अँधेरे में बसर कर रहे हैं!
ग़र्क़ाब मुस्तक़बिल कही
फिर चमकाना चाहतें हैं!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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