रफ़ी-ए-हिन्दोस्ताँ!
मीठी आवाज़ के शहेनशाह थे वो
जहाँ-ए-तरन्नुम से पधारे थे वो!
फ़न के सही दीदावर थे वो
बहार-ए-मौसीक़ी बने थे वो!
वतन को नायाब तोहफ़ा थे वो
आवाज़ का कोहिनूर ही थे वो!
हमारे जज़्बात से वाबस्ता थे वो
आसमाँ से आए फ़रिश्ता थे वो!
- मनोज 'मानस रूमानी'
(सुरों के शहेनशाह और मीठी आवाज़ के मालिक हमारे अज़ीज़ मोहम्मद रफ़ी साहब का आज १०० वा जनमदिन और जन्मशताब्दी!)
उनपर मैंने बहुत लिखा हैं! मेरे 'चित्रसृष्टी' संगीत विशेषांक में उनपर मेरा खास लेख था! उन्हें विनम्र सुमनांजलि!)
- मनोज कुलकर्णी
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