मुँह मोड़ना भी अदा होती है हुस्न की.. शिक़वा, कुछ सोच होती है ज़माने की! इश्क़ के अलावा भी रहती चाहत कभी.. पाक़ ख़याल और दिल समझा करे कोई! - मनोज 'मानस रूमानी'
यूँ तो हम पहले से ही रूमानी मिज़ाज के और उसमें हसीनाओं के दीदार होते रहें! तो तारीफ़-ए-हुस्न लिखें बग़ैर कैसे रहेतें बस ख्वाहीश की हुस्न से शायरी होती रहें! - मनोज 'मानस रूमानी'
जब भी रु-ब-रु हुए..बात तो हो न सकी कुछ हमारे उसूल..कुछ उनकी जल्दी! ज़ुस्तज़ु थी यहां..और इक़रार वहां भी रिवाज़ों पर चलती..वह बिदा हो गयी! उम्र गुज़री पर ..दिल-ओ-दिमाख वहीं प्यार से संभाले..हसीन यादें ही सहीं! - मनोज 'मानस रूमानी'
मासूम जिंदगियाँ क्यों कुचलते हैं यह इंसान हो कर हैवान क्यों होते हैं यह! इतना बेक़ाबू हो रहा है सिरफिरापन प्यार, जज़्बात-ए-दिल भी करे ख़तम! - मनोज 'मानस रूमानी'
अमर आशिक़! जब तक होंगी दुनियाँ में मोहब्बत .. चाँद को देख़कर होगा मासूम प्यार.. ताज़महल है सच्चे प्यार की मिसाल होते रहेंगे हीर-रांझा, सोहनी-महीवाल फ़ना है लैला-मजनु, रोमिओ-जुलिएट पारो के लिए तड़पते रहेंगे देवदास.. फिर भी न होने देंगे इन्हे बदनाम उन्होंने ही किया था सच्चा प्यार! - मनोज 'मानस रूमानी'
आज की कोजागरी पूर्णिमा के अवसर पर चाँद पर मेरे शेर यहाँ पेश कर रहां हूँ! डूबता सूरज़ देखकर नाव में यह सफ़ऱ होगा हसीन जब पास होगा मेरा चाँद! - मनोज 'मानस रूमानी'