अन्नदाता किसान जिन्हें कहतें थे हम कुचल रहें हैं उन्हें ये बेरहम हुक्मरान! - मनोज 'मानस रूमानी'
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Showing posts from November, 2020
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नमस्कार/आदाब! मुझे यह नमूद करते हुए बड़ी ख़ुशी होती है की, मेरे इस 'शायराना' ब्लॉग पर अब तक मेरी ५०० से ऊपर शेर-ओ-शायरी प्रसिद्ध हुई हैं! इसमें मेरे अशआर, हाइकु, रुबाई से लेकर कुछ ग़ज़ल, नज़्म भी हैं। ज़्यादातर हिंदी-उर्दू और थोड़ी मराठी, इंग्लिश पोएट्री भी शामिल हैं। रोमैंटिक और कंटेम्पररी दोनों जॉनर की! कृपया यह पढ़तें समय स्क्रोल करके पहले की शायरी देखने के लिए 'मोअर पोस्ट्स' पर क्लिक करे और हर एक पूरी तरह पढ़ने के लिए 'रीड मोअर' पर क्लिक करे। शुभकामनाएं!! - मनोज कुलकर्णी ('मानस रूमानी')
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मनपसंद चाय! सुबह-शाम जिसकी हैं आस वह है हमारी प्यारी सी चाय उसके लुत्फ़ का क्या कहना जब बनाते हम अपनी चाय क्या दिन थे वे दोस्तों के साथ चाय पर घंटों होती थी गपछप सिनेमा, कला, संगीत थे विषय सिगरेट का कश, चाय का सिप कभी चाय शेयर भी होती थी अपनी किसी के होठों से भी सिर्फ रह गई बात उसमें एक पुछते जो जीवन साथी होने की अब लेखन सृजन रिझाने के लिए साथ हैं तो सिर्फ़ अपनी चाय की आयी है अब टी यलो, ग्रीन, हर्बल हमारी तो मनपसंद अपनी पुरानी - मनोज 'मानस रूमानी' (हाल ही में आई ख़बर 'नियमित चाय पीने से मस्तिष्क की संरचना बेहतर होकर अध्ययन कार्यात्मक, संरचनात्मक होता है!' पर मैंने यह लिखा!)