मनपसंद चाय!

सुबह-शाम जिसकी हैं आस
वह है हमारी प्यारी सी चाय
उसके लुत्फ़ का क्या कहना
जब बनाते हम अपनी चाय

क्या दिन थे वे दोस्तों के साथ
चाय पर घंटों होती थी गपछप
सिनेमा, कला, संगीत थे विषय
सिगरेट का कश, चाय का सिप

कभी चाय शेयर भी होती थी
अपनी किसी के होठों से भी
सिर्फ रह गई बात उसमें एक
पुछते जो जीवन साथी होने की 

अब लेखन सृजन रिझाने के लिए
साथ हैं तो सिर्फ़ अपनी चाय की
आयी है अब टी यलो, ग्रीन, हर्बल
हमारी तो मनपसंद अपनी पुरानी


- मनोज 'मानस रूमानी'

(हाल ही में आई ख़बर 'नियमित चाय पीने से मस्तिष्क की संरचना बेहतर होकर अध्ययन कार्यात्मक, संरचनात्मक होता है!' पर मैंने यह लिखा!)

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