वो देखती हैं रंगीन ख़ूबसूरत समां का..
रौशन हुआ नज़ारा उसके नूऱ-ए-हुस्न से!
उठती उस तरफ़ भी इक निगाह-ए-मेहरबाँ..
जहाँ कहीं हैं आशिक़ मुतासिर उसके हुस्न से!


- मनोज 'मानस रूमानी'

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