शबाब!
नज़ाक़त से भरी यह चाल, अदाएं
हवा का रुख़ बदलती रेशमी जुल्फ़ें
बेशुमार प्यार भरी पंखुड़ियों सी आँखे
दिल-ए-आशिक़ संभल जाए भी कैसे?
ग़ुलाबों रंगत लिए लबों की बहारें
गाल पर तिल की बचे नज़रों से
ज़ीनत तुम गुलशन-ए-हुस्न से
दिल-ए-आशिक़ संभल जाए भी कैसे?
- मनोज 'मानस रूमानी'
नज़ाक़त से भरी यह चाल, अदाएं
हवा का रुख़ बदलती रेशमी जुल्फ़ें
बेशुमार प्यार भरी पंखुड़ियों सी आँखे
दिल-ए-आशिक़ संभल जाए भी कैसे?
ग़ुलाबों रंगत लिए लबों की बहारें
गाल पर तिल की बचे नज़रों से
ज़ीनत तुम गुलशन-ए-हुस्न से
दिल-ए-आशिक़ संभल जाए भी कैसे?
- मनोज 'मानस रूमानी'
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