कभी साथी रहतें हैं हमनफ़स की तरह
ना होती हैं हमसफ़र होने की सोच तब
ख़ामोश इश्क़ जानने होती है देर अक़्सर
सिवाय दर्द-ए-फ़ुर्क़त कुछ न रहता तब

- मनोज 'मानस रूमानी'

Comments

Popular posts from this blog