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Showing posts from 2025
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पहला हसीन प्यार! जब भी रु-बरु हुएं..बात तो हो न सकी कुछ हमारे उसूल..कुछ उनकी जल्दी! जुस्तुजू थी यहाँ..और इक़रार वहां भी रिवाज़ों पर चलती..वह बिदा हो गयी! उम्र गुज़री लेकिन..दिलो दिमाग वहीँ प्यार से संभाले..हसींन यादें ही सहीं.! - मनोज 'मानस रूमानी'   (On teenage first love!)
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आसमाँ का चाँद तो ख़ैर नज़र आएगा मुश्ताक़ है कोई अपने चाँद के लिए! - मनोज 'मानस रूमानी'
कैसी बेरुख़ी ये..कोई हमदम न मिले रुख़-ए-महताब ही दिल शगुफ़्ता करे! - मनोज 'मानस रूमानी
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अब भी शादाब है यह ज़ीनत-ए-दिल खिल सकतें उसमें मोहब्बत के गुल! - मनोज 'मानस रूमानी'
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ईद की दिली मुबारक़बाद! अमन, भाईचारे का समाँ हर तरफ़ हो प्यार की शमा रोशन हर दिल में हो! - मनोज 'मानस रूमानी'
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नव वर्ष..विचार!! चैत्रातील हा नव वर्षारंभ घेऊन येवो नव चैतन्य..! 'वसुधैव कुटुंबकम्' विचारानं सर्व मानवजातीच्या प्रगतीचं! धर्म-जात सर्व भेद विसरून.. प्रेम, स्नेह भाव रुजवण्याचं! - मनोज 'मानस रूमानी'
कही ख़िज़ाँ में भी फूल खिलतें रहतें हैं कही बहार सिर्फ़ आती-जाती रहती हैं! - मनोज 'मानस रूमानी'
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काश आप रहनुमा होते.. राह भटके ज़िंदगी के..! हमराह यूँ हसीन होते.. खिलते गुल इश्क़ के! - मनोज 'मानस रूमानी'
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रूबरू की गुंजाइश नहीं.. दीदार-ए-यार ख़्वाब में ही! वैसे भी अब मुलाक़ात की.. हसीन कहानी नहीं होंगी..! - मनोज 'मानस रूमानी'
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कोई अव्यक्त रहता है उसे चाहते.. किसी को जो यूँ ही मिल जाती है! - मनोज 'मानस रूमानी'
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जहान-ए-इश्क़ हमारा वहीं थम गया हैं.. जहाँ आपसे ऐ हसीन सनम हम बिछड़े थे! - मनोज 'मानस रूमानी'
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वो राह-ए-मंज़िल, हमनफ़स नज़रअंदाज़ न होतें गुज़री है ज़िंदगी ये अहम गँवाने की नदामत में! - मनोज 'मानस रूमानी'
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होली मुबारक़! कुदरत ने भर दिए हैं हसीन रंग हम पर हैं ज़िन्दगी कैसे दे रंग! - मनोज 'मानस रूमानी'
चल रही है ख़िज़ाँ दौर-ए-नफ़रत की.. न जाने कब होगी फ़िज़ा मोहब्बत की! - मनोज 'मानस रूमानी'
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कभी मिलकर ख़ूबसूरत पल गुजारें थे अब नहीं यहाँ वे साथी, वो हमनफ़स! अतीत के झरोखे में ही पल वह देखते यादों के सहारे अकेले बैठे हैं 'मानस'! - मनोज 'मानस रूमानी' पिछले रविवार को हमारे 'संज्ञापन और पत्रकारिता विभाग' (पुणे विद्यापीठ), रानडे इंस्टिट्यूट के 'एल्युमिनी मीट - २०२५' में बैठे हम! - मनोज कुलकर्णी
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उसे कौनसा नज़र करे ग़ुलाब...? गुलशन-ए-हुस्न की ज़ीनत है वह! - मनोज 'मानस रूमानी'   (वैलेंटाइन वीक!)
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खिलतें रहें यूँ ही गुलाब हुस्न के.. रंगे फ़िज़ा इश्क़ की रूमानियत में - मनोज 'मानस रूमानी' (वैलेंटाइन वीक!)
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आसान नहीं रही ज़िंदगी और ना ही रहे हम भी! अपने जहाँ के लिए.. जारी है जंग अब भी! - मनोज 'मानस रूमानी' (मनोज कुलकर्णी)
समता, बंधुता, मानवता प्रिय.. एक आहोत आपण सर्व भारतीय! - मनोज 'मानस रुमानी '
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  हो..तमन्ना पूर्ति का उम्मीद, उमंग से भरा प्यार-भाईचारे से खिला मुबारक यह साल नया! - मनोज 'मानस रूमानी'