दिल फिर आशना!


एक हसीँ रुख़ का दीदार हुआ हैं
दिल आज फिर आशना हुआ हैं

छूट गएँ थे वो जो लम्हें हसीन
हम फिर उन्हें अब सजा रहें हैं
दिल आज फिर.... 


देखके उनका वो जमाल-ए-हुस्न
आँखों में प्यार का ख़ुमार चढ़ा हैं
दिल आज फिर.... 


मायूस सी थी ये ज़िन्दगी बस
अब नूऱ से उनके रोशन हुई हैं
दिल आज फिर....


ना जान सके थे एक बार जो प्यार
वो 'मानस' ये मोहब्बत कर बैठे हैं

दिल आज फिर....   

- मनोज 'मानस रूमानी'

(बस ऐसे ही यह रूमानी ग़ज़ल मैंने लिखी हैं!)

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