क्या यही था अपने सपने का आज़ाद मुल्क़?
देखकर सोचते होंगे बापू और बादशाह ख़ान!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(महात्मा गाँधीजी की १५१ वी जयंती पर इनको प्रणाम करते लिखा!)

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