जब मेहरबाँ हुआ था
हुस्न-ए-जन्नत-ज़ार
तब यह मुमताज़ जहाँ
तशरीफ़ लायी ज़मीं पर

- मनोज 'मानस रूमानी'

['मलिका-ए-हुस्न' मुमताज़ जहाँ याने मधुबाला की यह अभिजात प्रतिमा..के. आसिफ की क्लासिक फ़िल्म 'मुग़ल-ए-आज़म' (१९६०) से!]

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