शायद आशिक़ाना हो गया है मौसम
खिल उठा है यूँ हसीन बाग़-ए-टूलिप
ज़ीनत-ए-हुस्न अब दिखने दे हरतरफ़
आशिक़ों के दिल भी खिलें ऐसे हरतरफ़


- मनोज 'मानस रूमानी'

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