ग़म-ए-दिल!


दुख तो सब जतातें है..
किसी के गुज़रने के बाद

कौन जाने होता इस में..
कितना सच, कितना झूठ

पर मायूसी होंगी कहीं पे..
यक़ीनन हम जाने के बाद

आंसूं जो टपकेंगे वहीँ से..
पहुंचाएंगे दबा हुआ प्यार!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(काल्पनिक रचना एवं चित्र!)

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