रूमानी शाम की ख़ुमारी बढ़ातें..
मेरे पसंदीदा रंग में खिलें ज़रुल
अब इस बाग़-ए-हुस्न में बस..
दिखाई दे हमारी हसीन ज़रुल!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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