दिखें चाँद और महताब!
आसमाँ-सितारें जब शबाब में होतें
ख़्वाबगाह में हसीन ख्याल हैं आतें
शायद चाँद पूरा शबाब में होगा
उसपे भी इश्क़ का ख़ुमार होगा
अबतक न दिखा चाँद, न महताब
गुज़र न जाए वह बगैर दीदार शब्
हमें तो जुस्तजू हैं हमारे चाँद की
उस जमाल-ए-हुस्न महजबीं की
- मनोज 'मानस रूमानी'
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