जश्न-ए-आज़ादी मुबारक़!

मुकम्मल आज़ादी की आस लगाए बैठे हैं
खुलेपन से जहाँ जी सकें, व्यक्त हो सकें!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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