डीमोनेटायझेशन में बेवज़ह पीस गए आम.. नौ दो ग्यारह तो पहले ही हो चुके थे खास.! अब हो रही है कैशलेस इकॉनमी की बात.. फिरसे मुनाफ़ेदार खास और कैशलेस आम! - मनोज 'मानस'
फ़िरदौस-ए-वतन! क़ुदरत का हक़ीक़त में हसीन ख़्वाब है यह झीलों, रंगीन फूलों-पत्तों का शबाब है यह! प्रेमियों को लुभानेवाला खास गुलशन है यह हुस्न-ओ-इश्क़ का हमेशा जवाँ नज़ारा है यह! - मनोज 'मानस रूमानी'
कुदरत का हक़ीक़त में हसीन ख़्वाब हो तुम.. गुलशन में खिला हुआ लुभावना फूल हो तुम! चित्रकार ने बनायी ख़ूबसूरत तस्वीर हो तुम शायर ने लिखी हुई दिलक़श नज़्म हो तुम! - मनोज 'मानस रूमानी'
ईद के वक़्त लिखा.. कहते इंतज़ार-ए-चाँद ऐसा है.. जैसे कोई अपने मेहबूब का करे! हमारी मुबाऱकबाद कबूल कर ले चाँद रात के खूब शबाब के लिए! - मनोज 'मानस रूमानी'
होती होगी लोगों की सुबह भगवान के दर्शन से.. हमारी सबा होती है उनकी ख़ूबसूरत छवि देख के सोने से पहले लोग नाम उपरवाले का जपते होंगे.. हम शब्बा ख़ैर करते ख़्वाब में दीदार-ए-हुस्न करने! - मनोज 'मानस रूमानी'
मेरी पहली रुबाई! यह रुबाई नज़र कर रहा हूँ किसी ज़माने की अच्छी सहेली को..जो हमेशा साथ रहेती थी..लेकिन मैं ही उसके जज़्बात समझ नहीं सका! अब काश वह यह जान ले!... हमसफ़र ! हमको वह कहते है की 'अब हमसफ़र बनाओ किसीको!' अब उनको यह कैसे कहे की 'बनाना तो था आप ही को!' दिमाख कोशिश करता है काबू करने जज़्बात-ए-दिल को लेकिन दिल है के ज़ेवर की तरह संभाल के रखा है उनको! - मनोज 'मानस रूमानी'