मेरी पहली रुबाई!


यह रुबाई नज़र कर रहा हूँ किसी ज़माने की अच्छी सहेली को..जो हमेशा साथ रहेती थी..लेकिन मैं ही उसके जज़्बात समझ नहीं सका! अब काश वह यह जान ले!... 

हमसफ़र !

हमको वह कहते है की 'अब हमसफ़र बनाओ किसीको!'
अब उनको यह कैसे कहे की 'बनाना तो था आप ही को!'
दिमाख कोशिश करता है काबू करने जज़्बात-ए-दिल को 
लेकिन दिल है के ज़ेवर की तरह संभाल के रखा है उनको!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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