हो अपने देस में..या हो परदेस
होता वैसा लिबास..वैसा अंदाज़
हो बारीश, जाड़ों या ग़र्मी के दिन
चमकता है उसका..नूऱ-ए-हुस्न!
- मनोज 'मानस रूमानी'
होता वैसा लिबास..वैसा अंदाज़
हो बारीश, जाड़ों या ग़र्मी के दिन
चमकता है उसका..नूऱ-ए-हुस्न!
- मनोज 'मानस रूमानी'
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