देखता हूँ एक चेहरा ख़ूबसूरत..
रहेता है अक़सर गुमसुम मायूस 
कैसे खिलेंगी इस पर तबस्सुम?
शायद मोहब्बत हो इसका हल!

- मनोज 'मानस रूमानी'

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