आज के 'अगस्त क्रांति दिन' के अवसर पर मैंने इन पंक्तियों को लिखा.. क्रांति..हरदम जरुरी! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. मजहब परे देखने के लिए इंसानियत धर्म के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. दबी आवाज़ के लिए दबे जीवन के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. अपने वजूद के लिए हक़ पाने के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. समान हक़ पाने के लिए सबके सम्मान के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. खुली साँस लेने के लिए पसंदीदा जीने के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. ज़िंदगी सुधारने के लिए उसमे अर्थ लाने के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. अभिव्यक्त होने के लिए कला की सृजन के लिए! हाँ, क्रांति अब भी हैं जरुरी.. प्रेम से जीने के लिए गले मिलने के लिए! - मनोज 'मानस रूमानी'