रफ़ी-ए-हिन्दोस्ताँ!


मीठी आवाज़ के शहेनशाह थे वो
जहाँ-ए-तरन्नुम से पधारे थे वो!

फ़न के सही दीदावर थे वो
बहार-ए-मौसीक़ी बने थे वो!

वतन को नायाब तोहफ़ा थे वो
आवाज़ का कोहिनूर ही थे वो!

हमारे जज़्बातों से वाबस्ता थे वो
आसमाँ से आए फ़रिश्ता थे वो!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(सुरों के शहेनशाह और मीठी आवाज़ के मालिक हमारे अज़ीज़..मोहम्मद रफ़ी साहब को ४० वे स्मृतिदिन पर सुमनांजलि अर्पित करते लिखा!)

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