सिर्फ़ सिनेमा बसा था उनकी रूह-सांस में
ज़िंदगी भर वे उसी की हिफ़ाज़त करते रहे
रहनुमा थे वे हम सिनेमा के मुसाफ़िर के..
रहे उनके नक़्श-ए-क़दम इस पर लिखते!

- मनोज 'मानस रूमानी'

(गुरुपूर्णिमा के दिन हमारे आदर्श फ़िल्म हिस्टॉरियन..आदरणीय पी. के. नायर साहब को याद करते!) 🙏

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