शायरी कभी बन जाती हैं ज़रिया
अपनी ही दिल की बात कहने का
यूँ हुस्न-ओ-इश्क़ की बातें लिखतें..
होती है दिल्लगी, शेर होतें वाबस्ता


- मनोज 'मानस रूमानी'

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