महबूब अर्ज़ करें ग़ुल-हा-ए-दिल
सँभालने होतें दिल-ओ-जान से
बिखरें हुए बर्ग-ए-ग़ुल नहीं तो
लगतें है महज़ टुकड़ें दिल के!
- मनोज 'मानस रूमानी'
सँभालने होतें दिल-ओ-जान से
बिखरें हुए बर्ग-ए-ग़ुल नहीं तो
लगतें है महज़ टुकड़ें दिल के!
- मनोज 'मानस रूमानी'
(Picture just used for poem here!)
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