रूमानी मैना!



बगीचे में कुछ दिन मुख़्तलिफ़ आवाज़ें सुनीं
पंछी की ही..कभी सीटी..कभी गुफ़्तगू जैसी
पेड़ से गायब होती..रूबरू जायज़ा लेते समय
अब हुआ मालुम..मैना थी बाकमाल हुनर की

- मनोज 'मानस रूमानी'

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