किताबों की कहानियाँ होतीं रहेगी मुक़म्मल ज़िंदगी की कुछ रह जाती हैं अधूरी मुख़्तसर - मनोज 'मानस रूमानी'
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सुनहरा पल बिताया था हमने वहां कभी शान से सम्मुख जो थे अपने प्रजातंत्र की शान संसद के! - मनोज 'मानस रूमानी' [वर्तमान परिदृश्य के मद्देनज़र, तीस साल से भी पुराना सुनहरा पल याद आया..हमारे 'बी.सी.जे.' स्टडी टूर के दरमियान नई दिल्ली में हमारी पार्लियामेंट विज़िट का!] (छायाचित्र में मैं बीच में क्लासमेट्स के साथ हूँ!) - मनोज कुलकर्णी
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हवी राष्ट्रीय एकात्मता! कला-संस्कृतीचा हा महाराष्ट्र असता.. वीर, संत-सुधारकांची ही भूमी असता! अण्णा, अक्का शब्द इथे रुळता.. कर्नाटकी कशिदा साडीवर काढता! इडली-वडा, डोस्यावर ताव मारता आसामच्या चहाची लज्जत घेता! गुजराती गरबा झोकात खेळता... पंजाबी खाना-लस्सीचा स्वाद घेता! ओडिसी नृत्य शैली अनुभवता.. रायचे बंगाली चित्रपट गौरविता! काश्मीर ते कन्याकुमारी म्हणता हिमालयाच्या हाकेला सह्याद्री असता! कशाला मग प्रादेशिक अस्मिता? जर सर्व एकच भारतीय असता.! - मनोज 'मानस रूमानी'
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भाग्यशाली मी! गान सरस्वती यांच्या दरबारात.. जीवनातील असा हा सोनेरी क्षण! आपलेपणाने झालेली सुरीली बात, जीवन संगीताने भारावलेला क्षण! - मनोज 'मानस रूमानी' (माझा 'चित्रसृष्टी' संगीत विशेषांक 'स्वरसम्राज्ञी' लता मंगेशकर जी यांना दाखवल्यावर, कौतुकाने त्या पाहतानाचा सोनेरी क्षण आठवत.. त्यांस प्रथम स्मृतिदिनी माझी ही विनम्र शब्द सुमनांजली!) - मनोज कुलकर्णी
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ईर्ष्या, मुक़ाबला ये अल्फ़ाज़ नहीं आतें ऐसे जज़्बाती क़लमकारों की दोस्ती में खिलखिलाती हैं शेर-ओ-शायरी प्यार की महफ़िल इन सुख़नवरों की जब सजती हैं! - मनोज 'मानस रूमानी' (मशहूर लेखक-शायर जावेद अख़्तर जी पर लिखी गई किताब 'जादूनामा' का विमोचन हालही में जानेमाने लेखक-शायर गुलज़ारजी के हाथों हुआ। तब इन दो दिग्गजों के बीच की गहरी दोस्ती की जैसे महफ़िल खिली थी! उसपर उनको मुबारक़बाद देते हुए मैंने लिखा!)